रामपुर: विशाल हिमालय की उंचाईयों, ढलानों और घाटियों में अगर जहाज की तरह कोई पशु दौडता है तो वह है, चामुर्थी घोडा जिसका प्रत्येक कदम नपा-तुला और पहाडो को नापने के आत्मविश्वास से भरा होता है। चामुर्थी घोडो का पालन सदियों से पिन घाटी व किन्नौर जिला के हंगरंग तहसील में किया जाता रहा है। मध्य हिमालय वाले क्षेत्र में पाये जाने वाले घोडो को पिन घाटी में ‘घर कहा जाता है। सिपति घाटी में इनका वजूद होने की वजह से सिपति घोडा भी कहा जाता है।
स्पीति घाटी में कई परिवार घोडों के पालन पोषण से ही अपनी आजीविका अर्जित करते हैं। आरम्भ में तिब्बत, किन्नौर, कुल्लू व लाहोल स्पीति में स्थानीय लोग व्यापार तथा आवागमन के लिए इनका इस्तेमाल करते थे।
चामुर्थी घोड़ा रामपुर लवी मेले का विशेष आकर्षण है जिसमें पहाड़ी क्षेत्रों से मुख्यत: उत्तांचल, जम्मूकश्मीर, तिब्बत तथा प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्रों से खरीददार यहां पहुचते हैं ।
उप-निदेशक पशुपालन विभाग डा. आर.के. शर्मा ने बताया कि पशुपालन विभाग 1984 से लगातार हर वर्ष नवम्बर माह के प्रथम सप्ताह में प्रर्दशनी का आयोजन कर रहा है इस वर्ष विभाग द्वारा 30वीं अश्व प्रर्दशनी का आयोजन किया गया जिसमें 400 से ऊपर घोड़ों का पंजीकरण हुआ और 250 के लगभग घोड़े बिक भी चुके हैं ।
सरांहन के टाशीराम ने बताया कि वह पिछले 45 वर्षो से चामुर्थी घोड़ों का व्यपार कर रहे है और लाख से अधिक घोड़े बेच चुके है । यह काम उनका परिवार पीढ़ीदर पीढ़ी कर रहा है । उन्होंने कहा कि महंगाई के चलते खासकर चने और घास के दामों के चलते यह कार्य कठिन होता जा रहा है ।
भदराश के हसनअली ने बताया कि उनका परिवार दादों पढ़दादों के समय से यह कार्य कर रहा है हसनअली पिछले 50 वर्षो से इस कार्य से जुड़े है वह भैंसे भी पालते है और साथ-साथ 10-12 घोड़े भी पालते हैं । हसनअली ने इस मेले में एक घोड़ा 32 हजार में बेचा । चार घोड़े बेच चुके है औरे6 अभी बाकी है । उनका कहना है कि उनके बच्चे इस कार्य में रूची नही ले रहे हैं ।