ऊना जिला में पिछले कुछ सालों से मशरूम की खेती की तरफ न केवल किसानों व बेरोजगार युवाओं का रूझान बढ़ा है बल्कि जिला के कई स्वयं सहायता समूह भी कृषि व बागवानी विभाग से प्रशिक्षण लेकर मशरूम उगाने में जुट गए हैं। ग्रामीण क्षेत्रों के कई स्वयं सहायता समूह तो मशरूम के आचार तैयार करके चैखा मुनाफा कमा रहे हैं। जिला में 20 से अधिक स्वयं यहायता समूह मशरूम उत्पादन से सीधे तौर पर जुड़े हैं। कम जगह में अधिक से अधिक फायदा देने वाली मशरूम की खेती दिन-ब-दिन लोकप्रिय होती जा रही है। अंब विकास खंड के एक स्वयं सहायता समूह से जुड़ी गुरमेल कौर बताती हैं कि मशरूम अब वेजीटेरियन लोगों की पहली पसंद बन गई है। इसकी डिमांड साल भर बनी रहती है। सर्दी के साथ ही मशरूम बीजाई का सीजन शुरू हो जाता है। साल में दो बार इसकी खेती की जा सकती है। गुरमेल कौर ने बागवानी विभाग से मात्र सप्ताह भर की ट्रेनिंग लेकर मशरूम की खेती शुरू की थी और अब वह अपने आसपास की महिलाओं को मशरूम की खेती के टिप्स भी देती हैं।
बसाल गांव की सावित्री देवी का कहना है कि 10 गुणा 10 के कमरे के बराबर खेत से 150 से 200 किलो तक मशरूम पैदा की जा सकती है। मशरूम मार्केट में सौ रुपये से डेढ़ सौ प्रति किलो तक बिकती है। खासकर शादी के सीजन में इसकी कीमत तो डेढ़ सौ रुपये के भी पार हो जाती है। उसके मुताबिक एक सौ वर्ग मीटर के छोटे से टुकड़े से छोटे किसान लगभग 20 हजार रुपये तक की कमाई कर सकता है। सावित्री देवी जिस स्वयं सहायता समूह से जुड़ी हैं, वह पहले आम, नींबू व गलगल का आचार तैयार करके मार्किट में बेचता था लेकिन अब उसके उत्पादों में मशरूम की चटनी व अचार भी शामिल हो गया है।
केवल स्वयं सहायता समूहों के लिए ही नहीं बल्कि मशरूम की खेती ऊना जिला के किसानों के लिए अतिरिक्त आमदनी का जरिया बनती जा रही है। यहां के विभिन्न गांवों में बड़ी संख्या में किसान खुम्ब की खेती को अपना रहे हैं और चैखा मुनाफा अर्जित कर रहे हैं। ऊना स्थित कृशि विज्ञान केन्द्र भी किसानों को खुंभ उत्पादन सम्बन्धी तकनीकी ज्ञान प्रदान करने के लिए कारगर भूमिका निभा रहा है। विज्ञान केन्द्र के विशेषज्ञों का दावा है कि ऊना जिला के किसान अगर खुम्ब की खेती को अतिरिक्त आमदनी के जरिए के रूप में अपनाएं तो उनके वारे-न्यारे हो सकते हैं।
विशेषज्ञों के मुताबिक जिला ऊना की जलवाऊ वैसे भी खुत्ब उत्पादन के लिए माकूल है। खुम्ब उत्पादन के लिए जिस विशेष खाद यानि कम्पोस्ट की आवश्यकता होती है, उसे बनाने वाली सामग्री जैसे गेहूं व धान का भूसा और खादें इत्यादि यहां आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं। चूंकि खुम्ब बन्द कमरे में उगाए जाते हैं इसलिए मौसम व कुदरती आपदाओं का प्रभाव खुम्ब उत्पादन पर बिल्कुल नहीं पड़ता। खुम्ब उत्पादन के लिए विशेष तापमान व नमी की आवश्यकता होती है और ऊना जिला की जलवाऊगत परिस्थितियां इसके लिए अत्यन्त उपयुक्त हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि जिला ऊना में श्वेत बटन खुम्ब और ढींगरी व दुधिया खुम्ब की खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है। श्वेत बटन खुम्ब संसार की सबसे प्रसिद्ध खुम्ब है और संसार के कुल खुम्ब उत्पादन का 40 फीसदी से अधिक उत्पादन श्वेत बटन खुम्ब का ही होता है। इस खुम्ब की खेती की शुरूआत सबसे पहले पैरिस में 1650 के आसपास हुई थी। भारत में श्वेत खुम्ब की खेती सन् 1961 में शुरू हुई जब हिमाचल प्रदेश में खुम्ब की खेती का विकास नामक योजना भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की सहायता से सोलन जिला में शुरू की गई। भारत में इस समय खुम्ब का कुल वार्षिक उत्पादन लगभग 25 हजार टन है जिसमें सबसे अधिक बटन खुम्ब का ही योगदान है।
खुम्ब की खेती व्यवसाय की दृष्टि से आय का साधन तो है ही लेकिन साथ ही साथ इससे बेरोजग़ारों को रोजग़ार उपलब्ध होता है। जिला ऊना में अक्तूबर से मार्च तक श्वेत बटन खुम्ब, मार्च से अप्रैल तक आयस्टर खुम्ब या ढींगरी और मई से सितम्बर तक चायनिज़ खुम्ब उगाए जा सकते हैं। खुम्ब में प्रोटीन काफी मात्रा में होता है इसलिए मधुमेह व हृदय रोग से पीडि़त रोगों के लिए एक आदर्श भोजन है। श्वेत बटन खुम्ब को ठंडे इलाकों में वर्ष भर में 4-5 बार उगाया जा सकता है किन्तु ऊना जिला में इसका उत्पादन 2 बार केवल सर्दियों में अक्तूबर से मार्च तक किया जा सकता है जब यहां का तापमान ठंडा रहता है।
जिला ऊना में कई प्रगतिशील किसानों व युवाओं ने खुम्ब उत्पादन के जरिए स्वरोजग़ार के नए द्वार खोलें हैं। जिला के धमान्दरी नामक स्थान पर खान मशरूम फार्म स्थित है जहां खुम्ब का कम्पोस्ट तैयार करके किसानों को मुहैया करवाया जाता है। इस फार्म के मालिक यूसफ खान का कहना है कि दूर-दूर से किसान उनके पास खुम्ब उत्पादन की तकनीक जानने और कम्पोस्ट लेने आते हैं। झलेड़ा के नरेश चैधरी, देहलां के प्रेम चन्द बोंसरा और नंगड़ा के सुरजीत ंिसंह ने भी खुम्ब उत्पादन में नाम कमाया है। कृषि विज्ञान केन्द्र ऊना द्वारा व्यवसायिक खुम्ब प्रशिक्षण शिविर आयोजित करके अब तक सैंकड़ों किसानों व युवाओ ंको खुम्ब उत्पादन का प्रशिक्षण दिया जा चुका है। इन शिविरों में खाद बनाने की विधि, फसल प्रबन्धन, फसल संरक्षण, विपणन व विधायन सम्बन्धी विषयों पर भी विशेषज्ञों द्वारा जानकारी प्रदान की जाती है।