(दीपक) जनाब ये कसीदे न तों आशिक महबूब की शान में पढता है न खुदा की याद में, ये दौर ऐसा है जहां इंसान को प्यार मिल जाये ये तों मुमकिन है , प्याज को पाना मुश्किल…जी ..जी सही सुना आपने हम प्यार नहीं प्याज की ही बात कर रहे है प्याज जिसने जब चाहा सियासी भूचाल ला दिया , कभी गरीबी की मिसाल बना कभी अमीरों का मान तामसिक भोजन का शहजादा , सलाद का राजा व सियासी दाव-पेच का ब्रह्रास्त्र प्याज, आजकल अपने पूरे शबाब पर है।
चुनावी दौर में तों इसकी टौर देखते ही बनती है हर न्यूज चेनल में छाए है जनाब ..र्शोटेज चल रही है सुना है । कलयुग …और तामसिक वस्तुओ की र्शोटेज ..अटपटी सी बात है पर है एकदम सच । भईया जब र्शोटेज नहीं होगी तों हमरी वेलयु कहाँ से बनेगी ?और देश को तों आजकल इसकी जरूरत भी बहुत ज्यादा है। जब देश के राजनेतिक दलों के पास कोई मुद्दा ही न हो तों ,कोई तों चाहिए जो जनता का र्मागर्दशन कर सके और प्याज से बड़ा र्मागर्दशक कौन हो सकता है । जब जब जनता कन्फ्यूज हुई है प्याज ने आगे बढ़ कर र्मागर्दशन किया है । प्याज के छिलकों की तरह इसकी कहानी में कई रंग और आकार की परतें हैं।
1980 के चुनाव में तमाम मुद्दों के बीच तात्कालिक तौर पर सबसे बड़ा मुद्दा प्याज ही था। चुनावी भाषणों में इंदिरा गांधी ने जनता सरकार की नाकामियो का हवाला दे कर वोट मागे थे , आम आदमी प्याज की कीमतों से परेशान था और इंदिरा इसके लिए मोरारजी और चरण सिंह की सरकारों को जिम्मेदार बताती थी। चुनाव प्रचार के दौरान इंदिरा गांधी ने ये साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी की सरकार ने ही मुनाफाखोरों का साथ दिया है। दिल्ली में सुषमा स्वराज के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार 1998 का चुनाव प्याज की बढ़ी कीमतों के चलते हार गई। प्याज ही था जिसने एनडीए सरकार की नींद हराम कर दी थी और इसी प्याज के सहारे कांग्रेस ने सत्ता की चाबी हासिल की थी। ये प्याज गजब की चीज है , प्याज की कीमतों ने देश व प्रदेश की सरकार व प्रशासनिक हल्कों में इन दिनों तगड़ी खलबली मचा दी है ।
केन्द्रीय मंत्री जमाखोरी को इसकी वजह् बताकर राज्य सरकार को नसीहत देते है राज्य सरकार केन्द्र की नीतियों में खामियां तलाशती है और प्रधानमंत्री असहाय होकर सारा नजारा देख रहे है। प्याज का राजनीतिक इस्तेमाल करना आम बात है प्याज के इसी सियासी गुण के कारण सारा देश प्याज के आंसू रो रहा है। कृषि मत्रालय बारिश से फसल खराब हो गई ये र्तक देता है कुछ कला बाजारियों को कोसते दीखते है ।
एशिया की सबसे बड़ी प्याज मंडी लासलगांव है । देश में प्याज के कुल कारोबार का 70 फीसदी अकेले लासलगांव से होता है, तो वहीं राजस्थान के अलवर का भी प्याज के उत्पादन में अहम रोल है। प्याज का उत्पादन ठीक ठाक हुआ है तों किल्लत का प्रश्न ही नहीं उठता परन्तु बिचोलिये किसानों से सस्ता प्याज खरीदते हैं, उन्हें जमा कर लेते हैं और फिर बाजार में किल्लत पैदा कर बढ़े हुए दाम पर बेचते हैं । जो प्याज आप 80 से 100 रुपये किलो खरीद रहे होते है , वो असल में किसानों से इन बेचोलियो ने महज 8 से 12 रुपये के रेट पर ख़रीदा था। अब प्याज सेंचुरी मरने को अमादा है हो भी क्यूँ न जब एक सब्जी में इतनी सियासी गुण हो तों सेंचुरी मारना तों बनता है बास । प्याज एक सियासी सब्जी है इसमे कोई संशय नहीं है ।
सियासी दलों द्वारा इसे राहू व शनि की महादशा के रूप में देखा जाता रहा है जिस पर भी पडा उसके राजनेतिक जीवन के ५-१० साल तों गए, कई मर्तबा तों ये प्याज सयासी धुंर्दरो का चेप्टर क्लोस भी कर गया । इसकी एक एक परत कई कई रंग लिए है । कभी गरीब का साथी बन ये संर्घष की कहानी में जान फुक देता है कभी आमिरो के डाय्निग टेबल पर इतराता है। हिंदू धर्म में तामसिक गुणों से भरे प्याज को खाने मे वर्जित माना गया है, ये तंत्रिका तंत्र को उतेजित करता है । प्याज खाने से मुह में बदबू पैदा होती है कई बीमारियों के जन्मदाता वेकटिरियां को खिचने की प्याज में जबरदस्त ताकत होती है …आप सोच रहे होंगे एकाएक अब प्याज इतना अवगुणी कैसे लगने लगा भईया …अब वो कहावत तों अपने सुनी ही होगी अंगूर खट्टे है …बाकि आप समजदार है …है न ? अब आह करे या वाह …प्याज तों प्याज है हंसायेगा भी रुलाएगा भी ..चाहे आप आम हो या खास …!